"Sab Din Hot Na Ek Saman" (meaning "Every day is the same" in English) is a common phrase that reflects the monotony and repetitive nature of daily life. It is a feeling that many people can relate to, especially during times of stress or when we are stuck in a routine that feels unfulfilling or meaningless.
The phrase "sab din hot na ek saman" highlights the fact that our days can often blur together, with one day feeling very similar to the next. This can lead to feelings of boredom and a lack of excitement or purpose in our lives. It is easy to fall into a rut and feel as though we are just going through the motions, without any real sense of direction or purpose.
However, it is important to remember that we have the power to change our circumstances and break out of this cycle of monotony. It may take effort and courage, but it is possible to make positive changes in our lives and find meaning and fulfillment in our daily routines.
One way to do this is to make an effort to try new things and step outside of our comfort zones. This can involve taking up a new hobby or activity, traveling to new places, or simply trying something new in our daily lives. By introducing novelty and variety into our routines, we can break free from the feeling of sameness and find new sources of enjoyment and purpose.
Another way to combat the feeling of monotony is to set goals and work towards achieving them. This can give us a sense of direction and purpose, and help us feel like we are making progress and moving forward in our lives. By setting and working towards achievable goals, we can give ourselves a sense of accomplishment and satisfaction, which can help to break up the monotony of daily life.
Finally, it can be helpful to focus on the present moment and find joy and gratitude in the small things in life. This can involve taking the time to appreciate the beauty of nature, spending quality time with loved ones, or simply taking a moment to savor a delicious meal. By focusing on the present moment and finding joy in the simple things, we can break free from the feeling of monotony and find meaning and purpose in our daily lives.
In conclusion, the phrase "sab din hot na ek saman" reflects the feeling of monotony and repetition that many of us experience in daily life. However, by making an effort to try new things, setting and working towards goals, and finding joy in the present moment, we can break free from this cycle of sameness and find meaning and fulfillment in our daily routines.
Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Sab Din Rahat Na Ek Saman”, “सब दिन रहत न एक समान” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
हमारा जीवन प्रकृति के नियमों में बंधकर चलता है। आज यदि वसंत ऋतु है तो कल पतझड़ भी आएगा। इसी प्रकार सर्दी के बाद गर्मी, बरसात के बाद शीत, शरद ऋतु आदि ऋतुओं का क्रम चलता रहता है। रात के बाद दिन, दिन के बाद रात का यह चक्र हमेशा चलता रहता है। इसी प्रकार व्यवहार के स्तर पर भी मनुष्य के जीवन के सभी दिन एक जैसे नहीं व्यतीत होते। एक छोटे से सेल्समैन को कल का कारखाना मालिक बनते भी देखा जाता है। इसी प्रकार आज का धन्नासेठ कल का भिखारी बन कर सामने आता है। इस परिवर्तन को ही हम ऋतु परिवर्तन के समान मानव जीवन का बसंत और पतझड़, या सर्दी गर्मी कह सकते हैं। इससे आज तक कोई ना बच पाया है, ना भविष्य में ही बच पाएगा। कल तक हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था परंतु आज आजाद है। कल तक देश में सैकड़ों रियासतें और उनके राजा थे परंतु आज वह सब बीते कल की कहानी बन चुके हैं। कल तक देश में बड़े बड़े जमींदार घराने थे, आज वह सामान्य काश्तकार बनकर रह गए हैं। कल जहां खेत-खलियान और बाग-बगीचे लहलहा या करते थे, आज वहां कंक्रीट के जंगल उठ गए हैं। अर्थात नई नई बस्तियां बस गई हैं। कल तक मनुष्य आग, पानी, हवा को अपना स्वामी समझता था, पर आज स्वयं उन सबका स्वामी बन बैठा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि परिवर्तन मानव जीवन और समाज का शाश्वत नियम है। अतः यदि मनुष्य के जीवन में समय चक्र से कभी दुख दर्द की घटाएं गिर आती हैं, तो घबराना नहीं चाहिए। अपना उत्साह किसी भी हालत में मंद नहीं पढ़ने देना चाहिए। साहस और शक्ति से विचार पूर्वक कार्य करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन यह सोच कर करते रहना चाहिए, यदि वह दिन नहीं रहे, तो आज के दिन भी नहीं रहेंगे। ऐसा सोचकर गतिशील बने रहने से ही सुख शांति की आशा की जा सकती है।. Before publishing your Articles on this site, please read the following pages: 1. . एक दिन राजा रामचन्द्र जी, चढ़ के जात विमाना जी एक दिन उनका वनवास भयो दशरथ तजे प्राणा साधु सब …. Our mission is to provide an online platform to help students to share essays in Hindi language. This website includes study notes, research papers, essays, articles and other allied information submitted by visitors like YOU. भोजपुरी के बढ़िया वीडियो देखे खातिर आ हमनी के चैनल सब्सक्राइब करे खातिर क्लिक करीं। सब दिन होत न एक समाना एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह कंचन भरे खजाना एक दिन भरे डोम घर पानी मरघट गहे निशाना सब दिन होत न एक समाना ….
Sab din na hote ek samaan in Hindi Essay सब दिन रहत न एक समान पर निबंध
एक दिन बालक भयो गोदीया मा एक दिन भयो सयाना एक दिन चिता जरे मरघट पे धुआं जात असमाना …. ADVERTISEMENTS: सब दिन जात न एक समान अथवा समय-चक्र पर निबंध Essay on Different Phases of Time in Hindi! एक दिन अर्जुन महाभारत में, जीते इन्द्र समाना जी एक दिन भीलन लुटी गोपिका वही अर्जुन वही बाणा …. सबै दिन होत न एक समान सूक्ति पर निबंध संकेत बिंदु- 1 परिवर्तन ही जीवन 2 जीवन में उतार-चढ़ाव 3 इतिहास का एक अन्य प्रसंग 4 प्रकृति परिवर्तन का दूसरा रूप 5 उपसंहार। गुण, मूल्य, महत्त्व, आकार, प्रकार, रूप, मात्रा, विस्तार तथा संक्षेपण की दृष्टि से जीवन में सब दिन एक-ही जैसे नहीं रहते। मानव हो या पशु, प्रकृति हो या सृष्टि, चल हो या अचल, सब पर यह उक्ति चरितार्थ होती है। कारण, परिवर्तन ही जीवन है और समय परिवर्तनशील है। श्रीधर पाठक ' भारत-गीत' में लिखते हैं- परिवर्तन है प्राण प्रकृति के अविचल क्रम का। परिवर्तन क्रम ज्ञान मर्म है, निगमागम का। परिवर्तन है हार सृष्टि के सौन्दर्यों का। परिवर्तन है बीज विश्व के आश्चर्यों का।। जीवन में समय की गति तीव्र है। इस तीव्र गति से दौड़ते समय के चक्र की जो भी चपेट में आया, वह बदल गया। आशा निराशा में, सफलता असफलता में, जय पराजय में, उत्थान पतन में, सुख दुःख में, मिलन वियोग में, राग द्वेष में, प्रेम घृणा में, त्याग भोग में, तृष्णा वितृष्णा में बदल गई। परिणामतः जीवन की स्थिति बदल गई, गुण और मूल्य बदल गए। यशस्वी पुरुष के लिए उसका यश विद्रूप बन गया। अर्थवान् के लिए अर्थ अनर्थ हो गया। अहिंसावादी मनुष्य के लिए अहिंसा हास्यास्पद बन गई। राजा रंक बन गया और दीन मंत्री बन बैठा, प्रांत या राष्ट्र का भाग्यविधाता बन बैठा। हम अपने जीवन में झाँक कर देखें तो अपने जीवन के उतार-चढ़ाव, आनन्द और शोक, अवनति-उन्नति, शान्ति-कलह इस बात को प्रमाणित करेंगे कि जीवन में सब दिन एक समान नहीं होते। दैनिक जीवन में भी इसका अनुभव कर सकते हैं- घर में खीर बनी है, सब चाट-चाट कर खा रहे हैं, कल सब्जी में नमक ज्यादा था, इसलिए सब बड़बड़ा रहे थे। कल दफ्तर की बस बीच रास्ते में ऐसी ख़राब हुई कि तबीयत नासाद हो गई और आज जब घर लौटे तो घर में महाभारत मचा था। भारत में कल तक जमींदारों और राजाओं, नवाबों का राज्य था। जमींदारी उन्मूलन में जमींदारी खत्म हुई। राजाओं-नवाबों की सल्तनतें खत्म हुईं, प्रीवी पर्स खत्म हुए। राजशाही इतिहास के पन्नों की कथा बनकर रह गई। प्रभु राम का जीवन भी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। कहाँ राजसी वैभव और कहाँ बनवास के चौदह वर्षों का कष्टकर जीवन। ऊपर से सीता-हरण का दारुण दुःख। रावण से युद्ध की पर्वत-सम समस्या। सीता-मिलन से पूर्व सीता की अग्नि-परीक्षा राम राजा बने, सीता गर्भवती हुई, पर हुआ गर्भवती सीता का त्याग। इसे 'राम की लीला' कहें या 'सब दिन होत न एक समान' का श्रीराम के जीवन पर प्रभाव। इतिहास का एक अन्य प्रसंग है। भारत की सशक्त प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी का जीवन 'सबै दिन होत न एक समान' का जीवंत उदाहरण है। इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय, आपत्-काल की घोषणा, निर्वाचन में हार, मुकदमें और आरोप, पुनः प्रधानमंत्री बनना। देश की समस्याओं से जूझना। सैंकड़ों सुरक्षाकर्मियों से घिरी सुरक्षित इन्दिरा जी। और अन्त में बाड़ ही खेत को खा गई- उनके दो सुरक्षाकर्मियों ने ही उनकी हत्या कर दी। है न 'सबै दिन होत न एक समान' का सटीक उदाहरण। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव को ही लीजिए। कभी उनकी तूती बोलती थी, और अब मुकदमों के चक्कर में उनके तोते बोलते हैं। सबै दिन होत न एक समान का सटीक उदाहरण देते हुए कविवर नरोत्तमदास श्री कृष्ण से मिलने के पश्चात् सुदामा के जीवन में हुए परिवर्तन का उल्लेख करते हुए लिखते हैं- कै वह टूटी-सी छानी हुती कहँ। कंचन के सब धाम सुहावत। कै पग में पनही न हुतीं कहूँ। लै गजराजहु ठाडे महावत।। भूमि कठोर पै रात कटै कहँ। कोमल सेज पै नींद न आवत॥ कै जुरतो नहिं कोदौं सवा, प्रभु के परताप ते दाख न भावत।। सुदामाचरित पद कं. कहत कबीर सुनेउ भाई साधो यह पद हे निर्वाणा यह पद का जो अर्थ लगइहें होनहार बलवाना, सब दिन… टीम जोगीरा आपन भोजपुरी पाठक सब के ई वेबसाइट उपहार स्वरुप भेंट कर रहल बा। हमनी के इ कोशिश बा कि आपन पाठक सब के ढेर से ढेर भोजपुरी में सामग्री उपलब्ध करावल जाव। जोगीरा डॉट कॉम भोजपुरी के ऑनलाइन सबसे मजबूत टेहा में से एगो टेहा बा, एह पऽ भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के टटका ख़बर, भोजपुरी कथा कहानी, भोजपुरी किताब, भोजपुरी साहित्य आ भोजपुरी से जुड़ल समग्री उपलब्ध बा। टीम जोगीरा आपन भोजपुरी पाठक सब के ई वेबसाइट उपहार स्वरुप भेंट कर रहल बा। हमनी के इ कोशिश बा कि आपन पाठक सब के ढेर से ढेर भोजपुरी में सामग्री उपलब्ध करावल जाव। जोगीरा डॉट कॉम भोजपुरी के ऑनलाइन सबसे मजबूत ठेहा में से एगो ठेहा बा, एह पऽ रउवा लोगन के भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के टटका ख़बर, भोजपुरी कथा कहानी, भोजपुरी किताब, भोजपुरी साहित्य आ भोजपुरी से जुड़ल समग्री उपलब्ध बा।. परमात्मा की सृष्टि एक खेल की तरह है। इसमें धूप भी है और छाया भी। पहाड़ भी हैं और खाइयाँ भी। वसंत भी है और पतझड़ भी। जन्म भी है और मृत्यु भी। विजय भी है और पराजय भी। यहाँ डोली भी निकलती है और जनाज़ा भी। ये सब दृश्य संसार में बने ही रहते हैं। अंतर इतना है कि आज रामलाल पहाड़ की ऊँचाइयों पर है तो कल शामलाल होगा। समय परिवर्तनशील है। इसलिए दुख के दिनों में अधीर नहीं होना चाहिए। ये तूफान भी एक दिन चले जाएंगे। सुख के दिनों में फूल कर कुप्पा नहीं होना चाहिए। एक दिन ये सुख-साधन भी नहीं रहेंगे। कभी भारत में अंग्रेजों की तूती बोलती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे भारत को निगल लिया था। आज भारत के लक्ष्मी मित्तल और टाटा ब्रिटेन की विशालकाय कंपनियाँ खरीद रहे हैं। यहाँ तो यह कहावत चरितार्थ होती है- कभी नाव जहाज़ पर तो कभी जहाज़ नाव पर।.